
मरुधर गूंज, बीकानेर (23 जुलाई 2025)।
हरियाली अमावस्या 24 जुलाई गुरुवार को है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, सावन कृष्ण अमावस्या तिथि को हर साल हरियाली अमावस्या मनाई जाती है, इसे सावन अमावस्या या श्रावण अमावस्या भी कहा जाता है। इस बार की हरियाली अमावस्या पर गुरु पुष्य योग बन रहा है। स्थाई उन्नति के लिए यह योग शुभ माना जाता है। इस योग में खरीदना अच्छा होता है। हरियाली अमावस्या के दिन स्नान और दान करने से पाप मिटता है और पुण्य लाभ होता है।
हरियाली अमावस्या के अवसर पर पितरों के लिए तर्पण, दान, श्राद्ध आदि भी करते हैं। इस दिन पौधरोपण करते हैं क्योंकि इससे आपके ग्रह दोष मिटेंगे और बाद में वे पेड़ फल भी देंगे। आइए जानते हैं हरियाली अमावस्या के शुभ मुहूर्त के बारे में।
वहीं, इस दिन पितृ कवच का पाठ परम कल्याणकारी माना गया है, इससे सभी तरह के दुखों का नाश होता है। साथ ही पितरों की कृपा मिलती है।
हरियाली अमावस्या का शुभ मुहूर्त
- तिथि का शुभारंभ : 24 जुलाई, गुरुवार, 02:28 ए.एम. से
- तिथि का समापन : 25 जुलाई, शुक्रवार, 12:40 ए.एम. पर
- ब्रह्म मुहूर्त : 04:15 ए एम. से 04:57 ए एम. तक
- अभिजीत मुहूर्त : दोपहर 12:00 पी एम से दोपहर 12:55 पी एम तक
- अमृत काल : दोपहर 02:26 पी एम से दोपहर 03:58 पी एम तक
- विजय मुहूर्त : दोपहर 02:44 पी एम से दोपहर 03:39 पी एम तक
- गोधूलि मुहूर्त : शाम 07:17 पी एम से शाम 07:38 पी एम तक
- सायाह्न सन्ध्या : शाम 07:17 पी एम से रात 08:19 पी एम तक
- निशिता मुहूर्त : 25 जुलाई को 12:07 ए एम से 12:48 ए एम तक
हरियाली अमावस्या पर तर्पण का समय
हरियाली अमावस्या के दिन पितरों के लिए तर्पण आप स्नान के बाद कर सकते हैं। हरियाली अमावस्या का स्नान ब्रह्म मुहूर्त में कर लें या फिर सूर्योदय 05:38 ए एम के समय या उसके बाद कर लें। स्नान के बाद काले तिल, सफेद फूल और पानी से कुशा की मदद से तर्पण दें। तर्पण का जल पितरों को मिलता है, जिससे वे तृप्त होकर खुश होते हैं। अपने वंश को सुख, समृद्धि, संतान, शांति, उन्नति आदि का आशीर्वाद देते हैं।
हरियाली अमावस्या पर श्राद्ध का समय
हरियाली अमावस्या के दिन पितरों के लिए श्राद्ध का समय दिन में 11:30 बजे से लेकर दोपहर 02:30 बजे तक है। इस समय में पिंडदान, दान, पंचबलि कर्म आदि कर लें।
हरियाली अमावस्या के शुभ योग
- सर्वार्थ सिद्धि योग : पूरे दिन
- गुरु पुष्य योग : शाम 04:43 पी एम से जुलाई 25 को 05:39 ए एम तक
- अमृत सिद्धि योग : शाम 04:43 पी एम से जुलाई 25 को 05:39 ए एम तक
- पुनर्वसु नक्षत्र : प्रात:काल से शाम 04:43 पी एम तक
- पुष्य नक्षत्र : शाम 04:43 पी एम से पूरी रात तक
हरियाली अमावस्या पर मुहूर्त
हरियाली अमावस्या के दिन गुरु पुष्य योग शाम को 04:43 पी एम से बन रहा है। गुरु पुष्य योग एक अत्यंत शुभ और दुर्लभ संयोग होता है। गुरु पुष्य योग तक बनता है, जब गुरुवार के दिन पुष्य नक्षत्र होता है। गुरु पुष्य योग में कोई भी शुभ कार्य करेंगे तो उसका शुभ फल मिलेगा और वह अक्षय होता है। वह नष्ट नहीं होता है।ऐसी मान्यता है। हरियाली अमावस्या पर आप सोना, वाहन, मकान आदि शाम 4 बजकर 43 मिनट के बाद से खरीद सकते हैं।
हरियाली अमावस्या पर इस योग में करें ये काम
- गुरु पुष्य योग में नया बिजनेस, धन का निवेश और शेयर बाजार में शुरूआत करना शुभ फलदायी होता है।
- गुरु पुष्य योग में सोना और चांदी खरीदना अछा माना जाता है. इससे माता लक्ष्मी की प्राप्ति का अवसर मिलता है।
- इस शुभ योग में नई गाड़ी या कोई प्रॉपर्टी खरीदना उन्नति वाला होता है।
- गुरु पुष्य योग में नई नौकरी ज्वाइन करना, नया कॉन्ट्रैक्ट साइन करना, कोई पेपर साइन करना शुभ होता है।
- इस योग में दान, यज्ञ, पूजा, पाठ, पित्तरों का कार्य, मंत्र जाप, विद्या प्रारंभ आदि करना शुभ माना जाता है। इससे उत्तम फल की प्राप्ति होती है।
।। पितृ कवच ।।
कृणुष्व पाजः प्रसितिम् न पृथ्वीम् याही राजेव अमवान् इभेन।
तृष्वीम् अनु प्रसितिम् द्रूणानो अस्ता असि विध्य रक्षसः तपिष्ठैः।।
तव भ्रमासऽ आशुया पतन्त्यनु स्पृश धृषता शोशुचानः।
तपूंष्यग्ने जुह्वा पतंगान् सन्दितो विसृज विष्व-गुल्काः।।
प्रति स्पशो विसृज तूर्णितमो भवा पायु-र्विशोऽ अस्या अदब्धः।
यो ना दूरेऽ अघशंसो योऽ अन्त्यग्ने माकिष्टे व्यथिरा दधर्षीत्।।
उदग्ने तिष्ठ प्रत्या-तनुष्व न्यमित्रान् ऽओषतात् तिग्महेते।
यो नोऽ अरातिम् समिधान चक्रे नीचा तं धक्ष्यत सं न शुष्कम्।।
ऊर्ध्वो भव प्रति विध्याधि अस्मत् आविः कृणुष्व दैव्यान्यग्ने।
अव स्थिरा तनुहि यातु-जूनाम् जामिम् अजामिम् प्रमृणीहि शत्रून्।
।। पितृ स्तोत्र ।।
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान्।।
मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा।
तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि।।
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि:।।
प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।
नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।
अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्।
अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत:।।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण:।।
तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:।
नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज।।