September 13, 2025
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मरुधर गूंज, बीकानेर (20 जून 2025)

भगवान विष्णु को समर्पित योगिनी एकादशी का व्रत हिंदू धर्म में विशेष पुण्यदायी माना गया है। यह व्रत न केवल पापों से मुक्ति दिलाता है, बल्कि सुख-समृद्धि और लक्ष्मी कृपा भी प्रदान करता है। हर साल आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को यह व्रत रखा जाता है। आइए जानते हैं व्रत की सही तिथि, शुभ मुहूर्त, पारण समय और व्रत विधि।

योगिनी एकादशी 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त

वैदिक पंचांग के अनुसार, योगिनी एकादशी व्रत 21 जून शनिवार को रखा जाएगा।

एकादशी तिथि प्रारंभ : 21 जून, सुबह 07:18 बजे

एकादशी तिथि समाप्त : 22 जून, सुबह 04:27 बजे तक

व्रत पारण समय – व्रत का पारण द्वादशी तिथि में किया जाता है।

पारण का समय : 22 जून को दोपहर 01:47 बजे से शाम 04:35 बजे तक

ब्रह्म मुहूर्त : सुबह 04:04 से 04:44 तक

विजय मुहूर्त : दोपहर 02:43 से 03:39 तक

गोधूलि मुहूर्त : शाम 07:21 से 07:41 तक

निशिता काल : रात 12:00 बजे से 12:43 बजे तक

व्रत विधि और विशेष पूजन

योगिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। इस दिन तुलसी माता को दीपक दिखाकर आरती करना विशेष फलदायक माना गया है। लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें, जिससे माता लक्ष्मी प्रसन्न होकर घर में धन, वैभव और सुख देती हैं।

योगिनी एकादशी पर दान और पुण्य

इस दिन अन्न, वस्त्र, धन, गौ सेवा या जरूरतमंदों को कोई भी उपयोगी वस्तु दान करना बेहद शुभ माना जाता है। मान्यता है कि योगिनी एकादशी का व्रत 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर पुण्य देता है।

योगिनी एकादशी का महत्त्व

हिंदू धर्म ग्रंथों में हर एकादशी का अपना अलग महत्व बताया गया है। इन्हीं अलग-अलग विशेषताओं के कारण इनके नाम भी भिन्न-भिन्न रखे गये हैं। प्रत्येक वर्ष में चौबीस एकादशियां होती हैं, मल मास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती है।

लक्ष्मी चालीसा का पाठ क्यों करें?

लक्ष्मी चालीसा का पाठ करने से घर की दरिद्रता दूर होती है और धनलाभ के योग बनते हैं। यह शुक्र दोष और आर्थिक संकट को भी शांत करता है। एकादशी और शुक्रवार को लक्ष्मी चालीसा का पाठ करना विशेष शुभ माना गया है।

इन्हीं एकादशियों में एक एकादशी आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी जिसे योगिनी एकादशी कहते हैं। योगिनी एकादशी का उपवास रखने से समस्त पापों का नाश होता है, तथा इस लोक में भोग और परलोक मुक्ति भी मिलती है।

योगिनी एकादशी व्रत कथा!

महाभारत काल की बात है कि एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण कहा: हे त्रिलोकीनाथ! मैंने ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी की कथा सुनी। अब आप कृपा करके आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनाइये। इस एकादशी का नाम तथा माहात्म्य क्या है? सो अब मुझे विस्तारपूर्वक बतायें।

श्रीकृष्ण ने कहा: हे पाण्डु पुत्र! आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम योगिनी एकादशी है। इसके व्रत से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। यह व्रत इस लोक में भोग तथा परलोक में मुक्ति देने वाला है।

हे धर्मराज! यह एकादशी तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। इसके व्रत से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। तुम्हें मैं पुराण में कही हुई कथा सुनाता हूँ, ध्यानपूर्वक श्रवण करो- कुबेर नाम का एक राजा अलकापुरी नाम की नगरी में राज्य करता था। वह शिव-भक्त था। उनका हेममाली नामक एक यक्ष सेवक था, जो पूजा के लिए फूल लाया करता था। हेममाली की विशालाक्षी नाम की अति सुन्दर स्त्री थी।

एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प लेकर आया, किन्तु कामासक्त होने के कारण पुष्पों को रखकर अपनी स्त्री के साथ रमण करने लगा। इस भोग-विलास में दोपहर हो गई।

हेममाली की राह देखते-देखते जब राजा कुबेर को दोपहर हो गई तो उसने क्रोधपूर्वक अपने सेवकों को आज्ञा दी कि तुम लोग जाकर पता लगाओ कि हेममाली अभी तक पुष्प लेकर क्यों नहीं आया। जब सेवकों ने उसका पता लगा लिया तो राजा के पास जाकर बताया- हे राजन! वह हेममाली अपनी स्त्री के साथ रमण कर रहा है।

इस बात को सुन राजा कुबेर ने हेममाली को बुलाने की आज्ञा दी। डर से काँपता हुआ हेममाली राजा के सामने उपस्थित हुआ। उसे देखकर कुबेर को अत्यन्त क्रोध आया और उसके होंठ फड़फड़ाने लगे।

राजा ने कहा: अरे अधम! तूने मेरे परम पूजनीय देवों के भी देव भगवान शिवजी का अपमान किया है। मैं तुझे श्राप देता हूँ कि तू स्त्री के वियोग में तड़पे और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी का जीवन व्यतीत करे।

कुबेर के श्राप से वह तत्क्षण स्वर्ग से पृथ्वी पर आ गिरा और कोढ़ी हो गया। उसकी स्त्री भी उससे बिछड़ गई। मृत्युलोक में आकर उसने अनेक भयंकर कष्ट भोगे, किन्तु शिव की कृपा से उसकी बुद्धि मलिन न हुई और उसे पूर्व जन्म की भी सुध रही। अनेक कष्टों को भोगता हुआ तथा अपने पूर्व जन्म के कुकर्मो को याद करता हुआ वह हिमालय पर्वत की तरफ चल पड़ा।

चलते-चलते वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में जा पहुँचा। वह ऋषि अत्यन्त वृद्ध तपस्वी थे। वह दूसरे ब्रह्मा के समान प्रतीत हो रहे थे और उनका वह आश्रम ब्रह्मा की सभा के समान शोभा दे रहा था। ऋषि को देखकर हेममाली वहाँ गया और उन्हें प्रणाम करके उनके चरणों में गिर पड़ा।

हेममाली को देखकर मार्कण्डेय ऋषि ने कहा: तूने कौन-से निकृष्ट कर्म किये हैं, जिससे तू कोढ़ी हुआ और भयानक कष्ट भोग रहा है।

महर्षि के वचन सुन हेममाली अति प्रसन्न हुआ और उनके वचनों के अनुसार योगिनी एकादशी का विधानपूर्वक व्रत करने लगा। इस व्रत के प्रभाव से अपने पुराने स्वरूप में आ गया और अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक रहने लगा।

भगवान श्री कृष्ण ने कहा: हे राजन! इस योगिनी एकादशी की कथा का फल 88000 ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर है। इसके व्रत से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त में मोक्ष प्राप्त करके प्राणी स्वर्ग का अधिकारी बनता है।