
मरुधर गूंज, बीकानेर (13 जुलाई 2025)।
बेलपत्र एक ऐसे पेड़ का पत्ता है, जिसका धार्मिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक बहुत महत्व है। वास्तु-शास्त्र में माना जाता है कि यदि किसी घर में उत्तर पूर्व में बेल का पेड़ है, तो यह न केवल धनलाभ करवाता है बल्कि घर को खतरों से दूर रखता है। घर के पूर्व में यह सुख, शांति और अच्छे स्वास्थ्य के साथ पश्चिम में स्वास्थ्य और संतान का आशीर्वाद देता है और दक्षिण में यम से होने वाली परेशानियों से रक्षा करता है। स्कंद पुराण के अनुसार बेल वृक्ष की उत्पत्ति देवी लक्ष्मी या पार्वती के पसीने से हुई थी जो पर्वत पर गिरी थी। इसलिए, बेल का पेड़ देवी महालक्ष्मी को बहुत प्रिय है और शुक्रवार के दिन देवी लक्ष्मी को बेल का पत्ता चढ़ाना शुभ माना जाता है। भगवान शिव को बेलपत्र इतना पसंद क्यों है?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब समुद्र मंथन हुआ, तब विष (कालकूट) निकला जिसे भगवान शिव ने पी लिया। विष के प्रभाव से शिवजी का शरीर जलने लगा। तब देवताओं और ऋषियों ने शिवलिंग पर जल और बेलपत्र चढ़ाया, जिससे उनकी जलन शांत हुई। तभी से शिवजी को बेलपत्र अत्यंत प्रिय हो गए। एक अन्य कथा के अनुसार, माता पार्वती ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की और बेलपत्र अर्पित किए। प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया। तब से यह मान्यता बन गई कि बेलपत्र अर्पित करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।
स्कंद पुराण की एक कथा के अनुसार, एक बार माता पार्वती के स्वेद की बूंद मंदराचल पर्वत पर गिर गई और उससे बिल्व वृक्ष निकल आया। इसलिए कहा जाता है कि बेलपत्र में माता पार्वती के सभी रूप बसते हैं। वे वृक्ष की जड़ में गिरिजा के स्वरूप में, इसके तनों में माहेश्वरी के स्वरूप में और शाखाओं में दक्षिणायनी व पत्तियों में पार्वती के रूप में रहती हैं। फलों में कात्यायनी स्वरूप औऱ पुष्पों में गौरी स्वरूप निवास करता है। इस सभी रूपों के अलावा, मां लक्ष्मी का रूप समस्त वृक्ष में निवास करता है। बेलपत्र में माता पार्वती का प्रतिबिंब होने के कारण इसे भगवान शिव पर चढ़ाया जाता है।
बेलपत्र से जुड़ी अन्य मान्यताएं
हिन्दू धर्म में बेलपत्र में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का वास माना जाता है। इसके तीन पत्ते त्रिमूर्ति (सृजन, पालन, संहार) के प्रतीक हैं। अध्यात्म में बेलपत्र के तीन दल सत्व, रज और तम गुणों का प्रतीक होते हैं। शास्त्रों के अनुसार, तीन जन्मों के पापों का नाश करने की शक्ति बेलपत्र में होती है। साथ ही बेलपत्र की शीतलता शिवजी के तप्त शरीर को शांति प्रदान करती है। शिवपुराण में कहा गया है—
“बिल्वपत्रस्य दर्शनं, स्पर्शनं पापनाशनम्।
अघोर पाप संहारं, बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥”
इस श्लोक का अर्थ है कि बिल्वपत्र का दर्शन, स्पर्श और अर्पण करने से भीषण पापों का नाश होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो बेल वृक्ष के नीचे शिव लिंग की पूजा करता है, वो मोक्ष को प्राप्त करता है और भगवान शिव के स्थान पर पहुंचता है। इसके अलावा जो बेल के पेड़ के नीचे सिर पर पानी डालते हैं, वे सभी पवित्र नदियों में स्नान करने के लाभ प्राप्त करेंगे।
बेलपत्र का वैज्ञानिक महत्वबेलपत्र में शीतलता प्रदान करने का गुण होता है। तभी तो गर्मी में लोग इस पेड़ से प्राप्त होने वाले फल का भी जूस बनाकर पीते हैं और शिवलिंग को बेलपत्र चढ़ाने से ऊर्जा संतुलित रहती है और शिवजी की तपन शांत होती है। इसके अलावा बेलपत्र में एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल गुण होते हैं। यह वायु को शुद्ध करता है और वातावरण को शांति प्रदान करता है। आयुर्वेद में बेलपत्र का उपयोग पाचन तंत्र, मधुमेह और हृदय रोगों के इलाज में किया जाता है। बेलपत्र का रस शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।