
मरुधर गूंज, बीकानेर (24 जून 2025)।
हर माह के कृष्ण पक्ष की आखिरी तिथि पर अमावस्या का पर्व मनाया जाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, इस बार आषाढ़ अमावस्या 25 जून को मनाई जाएगी। इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु और पितरों की पूजा करने का विधान है। साथ ही पवित्र नदी में स्नान और दान जरूर करें।
अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ का बहुत महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पीपल के पेड़ में सभी देवी-देवताओं का वास होता है, खासकर भगवान विष्णु का। अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करने से पितर दोष कम होता है और पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। इसके अलावा, यह भी माना जाता है कि इस दिन पीपल के पेड़ की पूजा करने से धन, समृद्धि, यश, और कीर्ति की प्राप्ति होती है।
अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाने और उसकी परिक्रमा करने का भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि ऐसा करने से देवी-देवता प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा बनी रहती है, साथ ही वैवाहिक जीवन से जुड़ी मुश्किलें भी दूर होती हैं।
पीपल के पेड़ की पूजा के कुछ मुख्य कारण:
- पितृ दोष से मुक्ति : पीपल के पेड़ की पूजा करने से पितर दोष कम होता है और पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
- देवी-देवताओं की कृपा : पीपल के पेड़ में सभी देवी-देवताओं का वास माना जाता है, खासकर भगवान विष्णु का।
- सुख-समृद्धि : पीपल के पेड़ की पूजा करने से धन, समृद्धि, यश, और कीर्ति की प्राप्ति होती है।
- नकारात्मक ऊर्जा का नाश : पीपल के पेड़ के पास दीपक जलाने से वातावरण शुद्ध होता है और नकारात्मकता दूर होती है।
- वैवाहिक जीवन में खुशहाली : अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की परिक्रमा करने से वैवाहिक जीवन में खुशहाली आती है।
पीपल के पेड़ की पूजा कैसे करें :
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
- पीपल के पेड़ के नीचे घी का दीपक जलाएं।
- पीपल के पेड़ को जल चढ़ाएं।
- पीपल के पेड़ की 11 बार परिक्रमा करें।
- पितरों के नाम का दान करें।
- ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
इस प्रकार, अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करने से कई लाभ प्राप्त होते हैं और यह दिन विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। अगर आप भी आषाढ़ अमावस्या पर पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं, तो पूजा के दौरान पितर स्तोत्र और पितर कवच का पाठ करें। इससे साधक को पूजा का पूर्ण फल मिलता है। साथ ही जीवन खुशियों से भर जाता है।
।।पितृ स्तोत्र।
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम् ।।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् । ।
मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा ।
तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि ।।
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा ।
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि: ।।
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् ।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि: ।।
प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च ।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि: ।।
नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ।।
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ।।
अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् ।
अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत: ।।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय: ।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण: ।।
तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस: ।
नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज ।।
।।पितृ कवच।।